कारणों से कोई भी द्विज ‘शूद्र’ घोषित हो सकता है अर्थात् उसका उच्चवर्ण से निनवर्ण में पतन हो सकता है, यदि उसका आचार-व्यवहार शिक्षित वर्णों जैसा नहीं है।
(च) मनु की पूर्वोक्त व्युत्पत्तियों की पुष्टि शास्त्रीय परपरा से भी होती है। उनमें भी हीनता का भाव नहीं है। ब्राह्मण ग्रन्थों में शूद्र की उत्पत्ति ‘असत्’ से वर्णित की है। यह बौद्धिक गुणाधारित उत्पत्ति है- ‘‘असतो वा एषः सभूतः यच्छूद्रः’’ (तैत्ति0 ब्रा0 3.2.3.9) अर्थात्-‘‘यह जो शूद्र है, यह असत्=अशिक्षा (अज्ञान) से उत्पन्न हुआ है।’’ विधिवत् शिक्षा प्राप्त करके ज्ञानी व प्रशिक्षित नहीं बना, इस कारण शूद्र रह गया।
(छ) महाभारत में वर्णों की उत्पत्ति बतलाते हुए शूद्र को ‘परिचारक’ = ‘सेवा-टहल करने वाला’ संज्ञा दी है। उससे जहां शूद्र के कर्म का स्पष्टीकरण हो रहा है, वहीं यह भी जानकारी मिल रही है कि शूद्र का अर्थ परिचारक है, कोई हीनार्थ नहीं। श्लोक है- मुखजाः ब्राह्मणाः तात, बाहुजाः क्षत्रियाः स्मृताः। ऊरुजाः धनिनो राजन्, पादजाः परिचारकाः॥ (शान्तिपर्व 296.6) अर्थ- मुखमण्डल की तुलना से ब्राह्मण, बाहुओं की तुलना से क्षत्रिय, जंघाओं की तुलना से धनी=वैश्य, और पैरों की तुलना से परिचारक=सेवक (शूद्र) निर्मित हुए।
(ज) डॉ0 अम्बेडकर र का मत-डॉ0 अम्बेडकर र ने मनुस्मृति के श्लोक ‘‘वैश्यशूद्रौ प्रयत्नेन स्वानि कर्माणि कारयेत्’’ (8.418) के अर्थ में शूद्र का अर्थ ‘मजदूर’ माना है- ‘‘राजा आदेश दे कि व्यापारी तथा मजदूर अपने-अपने कर्त्तव्यों का पालन करें।’’ (अम्बेडकर र वाङ्मय, खंड 6, पृ0 61)। यह अर्थ भी हीन नहीं है। मनु के और शास्त्रों के प्रमाणों से यह स्पष्ट हो गया है कि जब शूद्र शद का प्रयोग हुआ तब वह कर्माधरित या गुणवाचक यौगिक था। उसका कोई हीनार्थ नहीं था। मनु ने भी शूद्र शद का प्रयोग गुणवाचक किया है, हीनार्थ या घृणार्थ में नहीं। शूद्र नाम तब हीनार्थ में रूढ़ हुआ जब यहां जन्म के आधार पर जाति-व्यवस्था का प्रचलन हुआ। हीनार्थवाचक शूद्र शद के प्रयोग का दोष वैदिककालीन मनु को नहीं दिया जा सकता। यदि हम परवर्ती समाज का दोष आदिकालीन मनु पर थोपते हैं तो यह मनु के साथ अन्याय ही कहा जायेगा। अपने साथ अन्याय होने पर आक्रोश में आने वाले लोग यदि स्वयं भी किसी के साथ अन्याय करेंगे तो उनका वह आचरण किसी भी दृष्टि से उचित नहीं माना जायेगा। वे लोग यह बतायें कि जिस दोष के पात्र मनु नहीं है, उन पर वह दोष उन थोपने का अन्याय वे क्यों कर रहे है? क्या, उनकी यह भाषाविषयक अज्ञानता और इतिहास विषयक अनभिज्ञता है अथवा केवल विरोध का दुराग्रह?
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