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Fri, 20-September-2024

बीज मंत्र… वो छोटे मंत्र जो ब्रह्मांड निर्माण के समय ध्वनि तरंगों से पैदा हुए

बीज मंत्र बहुत शक्तिशाली मंत्र है जिनका उपयोग हिंदू धर्म में देवी-देवताओं के आह्वान के लिए किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह छोटे मंत्र ब्रह्मांड के निर्माण के दौरान बनाई गई ध्वनि तरंगों से पैदा हुए थे। इनमें से प्रत्येक मंत्र एक अर्थ से जुड़ा हुआ है। 

प्रत्येक बीज मंत्र के जाप के दौरान जो ध्वनि आवृत्ति बनती है, वह देवी का आह्वान करने का काम करती है। उनकी ब्रह्मांडीय ऊर्जा को शरीर में प्रवाहित करने में मदद करती है। यदि कोई दिव्य आकृतियों की शक्तियों को प्राप्त करने का इरादा रखता है, इन मंत्रों का जाप लगातार इस संदर्भ में चमत्कारी काम करता है। 

वास्तव में प्रत्येक देवता को समर्पित मंत्रों का जाप करना और उनमें बीज मंत्र जोड़ना, यह देवी-देवताओं को अधिक प्रसन्न करता है। इन बीज मंत्रों में शक्ति होती है। ये शरीर और मन दोनों को स्वस्थ रखते हैं।

बीज मंत्र एकल या मिश्रित शब्द होते हैं, जहां शक्ति शब्द की ध्वनि में निहित होती है।

बीज मंत्र कैसे मदद करते हैं 

बीज मंत्र जाप के दौरान बोले जाने वाले प्रत्येक शब्द का एक महत्वपूर्ण अर्थ होता है, क्योंकि यह मंत्र की नींव बीज की तरह होती है। लेकिन शब्दों या ध्वनि को तोड़कर सरल और समझने योग्य भाषा में बदलना सही नहीं है। इन मंत्रों के पीछे के विज्ञान को समझने में काफी समय लग सकता है, फिर भी यह पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हो पाते हैं। ये प्राकृतिक रूप से प्रकट हुए हैं। इसके बाद ऋषियों द्वारा उनके छात्रों तक पहुंचा और अंत में शेष दुनिया में इसका प्रसारा हुआ। समय के साथ इन मंत्रों ने अपना स्थान बना लिया है। कई अलग-अलग बीज मंत्र हैं, जो अलग-अलग देवी-देवताओं को समर्पित हैं। लेकिन ऐसे बीज मंत्र भी मौजूद हैं, जो विभिन्न ग्रहों को समर्पित हैं, जिनके उपयोग से उस ग्रह को शांत किया जा सकता है, जो व्यक्ति विशेष की कुंडली में गड़बड़ी का कारण बन रहा हो या खुद को ग्रह के अशुभ प्रभावों से बचाना हो।

ये बीज मंत्र अत्यंत शक्तिशाली और प्रभावी हैं। जब दृढ़ विश्वास और पवित्र मन से इनका जाप किया जाता है, तो जातक की कोई भी इच्छा पूरी हो जाती है। इस मंत्र का जाप करने के लिए मन का स्थिर एवं शांत होना जरूरी है। शांत मन और ध्यान केंद्रित करने के लिए निरंतर “ओम” मंत्र का उच्चारण किया जा सकता है। इसके बाद विशिष्ट बीज मंत्र का जाप शुरू करना चाहिए। मंत्र को एक समान “ओम” से समाप्त करने से मंत्र पूरे चक्र में आ जाता है।

बीज मंत्रों का जाप कैसे करें 

कहते हैं तन स्वच्छ तो मन स्वच्छ। इसलिए जब भी बीज मंत्रों के जाप की शुरुआत करें, तो उससे पहले स्नान कर लें और साफ-सुथरे वस्त्र पहनें।

सुबह-सुबह इस मंत्र का जाप करना चाहिए। यदि किसी कारणवश आप मंत्र जाप करने से पहले स्नान नहीं कर सकते हैं तो खुद पर पानी की कुछ बूंदें छिड़कें। इसके बाद सफ मन से मंत्र जाप शुरू करें।

मंत्र जाप करने के लिए मन शांत होना चाहिए। शांत मन के लिए ध्यान केंद्रित करना होता। इसलिए जब भी मंत्र जाप करें, एक शांत और खाली स्थान पर बैठें। मंत्र जाप के लिए हमेशा ऐसा स्थान चुनें, जहां कोई मौजूद न हो और कोई भी आपको 30 से 40 मिनट तक परेशान न करे। समय सीमा आप अपने हिसाब से निर्धारित कर सकते हैं।
शब्द और उच्चारण बीज मंत्रों की शक्ति को उजागर करने की कुंजी हैं। हर शब्दांश का स्पष्ट रूप से बहुत दृढ़ संकल्प के साथ उच्चारण करने का प्रयास करें। बीज मंत्रों का जाप करने के सही तरीके पर मार्गदर्शन करने के लिए आप गुरु की मदद ले सकते हैं।
यदि लंबे समयवधि तक मंत्र जाप करने के बावजूद कोई अच्छा परिणाम न मिले, तो हार न मानें। ध्यान रखें कि हर मंत्र को काम करने में समय लगता है। इस प्रक्रिया और स्वयं पर संदेह न करें। खुद पर विश्वास रखें। अगर आपने साफ मन से मंत्रों का जाप किया है, तो अंतिम रूप से अच्छे परिणाम जरूर मिलेंगे। बस थोड़ा सा धैर्य बनाए रखें।
सर्वोत्तम परिणाम देखने के लिए दिन में कम से कम 108 बार मंत्र का जप करें।
आप मंत्राें का उच्चारण करने से पहले खुद को ध्यान केंद्रित करने का प्रयास करें। ध्यान आपको शांति प्राप्त करने में मदद करता है। साथ ही ध्यान करने की वजह से तनाव दूर होता है और आत्मा स्थिर होती है।

महत्वपूर्ण बीज मंत्र 
मूल बीज मंत्र “ओम” है। यह वह मंत्र है, जिससे अन्य सभी मंत्रों का जन्म हुआ है। प्रत्येक बीज मंत्र से एक विशिष्ट देवी-देवता जुड़े हुए हैं। बीज मंत्र के प्रकार हैं- योग बीज मंत्र, तेजो बीज मंत्र, शांति बीज मंत्र और रक्षा बीज मंत्र।

ह्रौं
यह शिव बीज मंत्र है। यहां “ह्र” का अर्थ शिव और “औं” का अर्थ सदाशिव है। भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए भगवान शिव को ध्यान में रखकर ही इस मंत्र का जाप करें।

दूं
यह मंत्र देवी दुर्गा को समर्पित है। उनका आशीर्वाद और उनसे सुरक्षा प्राप्त करने के लिए इसका जाप किया जाता है। “द’’ का मतलब दुर्गा और “ऊ” का मतलब सुरक्षा है। यहां बिन्दु क्रिया (प्रार्थना) है। यह मंत्र देवी दुर्गा की ब्रह्मांड की मां के रूप में स्तुति करता है।

क्रीं
यह मंत्र मां काली को समर्पित है। इस मंत्र में विशेष शक्तियां हैं, जो माता पार्वती के अवतारों में से एक मां काली को प्रसन्न करती है। यहां “क” का अर्थ है मां काली, “र” ब्रह्म है और “ई” महामाया है। कुल मिलाकर इस मंत्र का अर्थ है कि महामाया मां काली मेरे दुखों का हरण करो।

गं
यह बहुत ही शुभ मंत्र है। यह बीज मंत्र भगवान गणेश से संबंधित है। “ग” गणपति के लिए उपयोग किया गया है और बिंदु दुख का उन्मूलन है अर्थात श्री गणेश मेरे दुखों को दूर करो।

ग्लौं
यह भी गणेश के बीज मंत्रों में से एक मंत्र है। यह मंत्र भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए है। इसमें “ग” स्वयं भगवान गणेश हैं, “ल” का अर्थ है व्याप्त है और “औं” का अर्थ है प्रतिभा।

ह्रीं
यह देवी महामाया बीज मंत्र है, जिसे ब्रह्मांड की माता भुवनेश्वरी के नाम से भी जाना जाता है। यहां “ह” का अर्थ है शिव, “र” प्रकृति है और “ई” महामाया और ‘बिंदु’ दुख हर्ता है। इस मंत्र को दुर्भाग्य को दूर करने के लिए सहायक माना जाता है।

श्रीं
यह लक्ष्मी बीज मंत्र है। इस मंत्र को धन प्राप्ति के लिए जप किया जाता है। इस मंत्र में “श्र” महालक्ष्मी के लिए है, “र” धन के लिए है और “ई” पूर्ति के लिए है। जब कोई धन और समृद्धि के लिए महालक्ष्मी को जगाने की कोशिश कर रहा हो, तो उसे इस मंत्र का जाप करना चाहिए। यह बीज मंत्र बहुत फायदेमंद है।

ऐं
इस बीज मंत्र से मां सरस्वती का आविर्भाव होता है। अगर कोई ज्ञान और शिक्षा के लिए प्रार्थना करना चाहता है, तो यह बीज मंत्र आवश्यक है। मां सरस्वती शिक्षा, ज्ञान, संगीत और कला की देवी हैं। यहां “ऐं” का अर्थ है, हे मां सरस्वती।

क्लीं
यह बीज मंत्र भगवान कामदेव के लिए है। वह प्रेम और इच्छा के देवता हैं। इस बीज मंत्र के जरिए कामदेव की प्रार्थना की जाती है। यहाँ “क” का अर्थ कामदेव है, “ल” इंद्र देव के लिए है और “ई” संतुष्टि के लिए है।

हूं
यह शक्तिशाली बीज मंत्र भगवान भैरव से जुड़ा है। भगवान भैरव, भगवान शिव के उग्र रूपों में से एक हैं। इस मंत्र में “ह” भगवान शिव है और “ऊं” भैरव के लिए है। कुल मिलाकर इस मंत्र का अर्थ है, हे शिव मेरे दुखों को नाश करो।

श्रौं
भगवान विष्णु के रूपों में से एक भगवान नृसिंह इस शक्तिशाली बीज मंत्र से उत्पन्न होते हैं। “क्ष” नृसिंह के लिए है, “र” ब्रह्म हैं, “औ” का अर्थ है ऊपर की ओर इशारा करते हुए दांत और “बिंदु” का अर्थ है दुख हरण। इस मंत्र के माध्यम से ब्रह्मस्वरूप नृसिंह से प्रार्थना की जा रही है कि हे भगवान मेरे दुखों को दूर करो।