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Fri, 20-September-2024

‘ऋग्वेद’ का ‘नासदीय सूक्त’ देता है ब्रह्मांड की उत्पत्ति को लेकर हर सवाल का जवाब

में अन्य चीजों का जन्म हुआ है, केवल प्राण को छोड़कर। इस परम तत्व से बाकी चीजें ऐसे बाहर निकलकर आईं, जैसे फेफड़े से एक झोंके के रूप में हवा बाहर निकलकर आती है। वेद में बताये गये ऊर्जा के स्रोत ‘परम तत्व’ की व्याख्या जैसी ही व्याख्या भी बिग बैंग थ्योरी करता है। उनका भी मानना है कि जब अंतरिक्ष की रचना हुई थी, तो वह बहुत गर्म था और आज जो चार मूलभूत बल ( गुरुत्वाकर्षण बल, विद्युत चुम्बकीय बल, न्यूक्लियर फोर्स और वीक इनटेरेक्शन फोर्स) काम करते हैं, उस समय वे सब मिलकर एक थे। जैसे-जैसे ब्रह्मांड ठंडा होता गया, ये सारे बल अलग होते चले गये। उनका मानना है कि आज जो भी चीजें मौजूद हैं, उन सबकी उत्पत्ति ब्रह्मांड से ही हुई है, जिसे वेद ने ‘परम तत्व’ कहा है। वेद में दिन और रात नहीं होने की बात भी प्रमाणित होती है क्योंकि उस वक्त सूर्य और चंद्रमा का निर्माण नहीं हुआ था, तो दिन और रात होने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। 

ब्रह्मांड में पहले केवल अंधेरा था ​
घटना को समझना असंभव था। पहले एक लहराता द्रव्य अस्तित्व में आया, जिसे ‘सलिल’ कहा गया और उसके आसपास एक हल्का पदार्थ फैला था जिसे ‘अभु’ कहा गया। उनके अनुसार वह शायद ऊष्मा से विकसित हो गया था। वेद में यहाँ तारों और आकाशगंगा के निर्माण की बात कही जा रही है। बिग बैंग थ्योरी के अनुसार भी शुरुआती के कुछ लाख वर्ष तक ‘पदार्थों’ और ‘ऊर्जाओं’ का निर्माण होता रहा, इसी प्रक्रिया को ऋषियों ने रहस्यमयी घटना कहा था। उन वर्षों में ‘फोटॉन’, ‘इलेक्ट्रॉन और प्रोटॉन’ से टकराता रहा और उसने एक अपारदर्शी द्रव्य का निर्माण किया। लगभग एक लाख वर्ष बाद जब ब्रह्मांड का तापमान कम हुआ, तो प्रोटॉन और इलेक्ट्रॉन ने मिलकर हाईड्रोजन परमाणु का निर्माण किया। हाईड्रोजन पारदर्शी होता है, जिसने उस सैकडों सालों से बन रहे उन अपारदर्शी द्रव्यों को पारदर्शी किया जिसे हम आज अंतरिक्ष कहते हैं। बाद में धीरे-धीरे आकाशगंगा और तारों का निर्माण होना भी शुरु हुआ। 

उस समय ब्रह्मांड में कोई दिशा नहीं थी​ 
आगे की सूक्तियों में ऋषि यह बताते नजर आते हैं कि कैसे अंतरिक्ष में छोटे-बड़े ‘गेलेक्सीज’ का निर्माण हुआ। इन गेलेक्सीज में काफी मात्रा में गैस और धूल थी, जिससे ‘ग्रहों’, ‘उपग्रहों’ और ‘उल्का पिंडों’ का निर्माण हुआ। इस सिद्धांत के लिए सूक्त में ‘स्वध’ और ‘प्रयति’ शब्द का इस्तेमाल हुआ है। वो दिशाओं के बारे में भी बताते हैं कि उस समय ब्रह्मांड में कोई दिशा नहीं थी। ऊपर किसे कहें या नीचे किसे कहें, या तिरछा किस तरफ है, कहा नहीं जा सकता था। बाद की सूक्तियों में वह यह सवाल करते नजर आते हैं कि यह बताना बहुत मुश्किल है कि सबकुछ की रचना कैसे हुई। कोई नहीं जानता कि जीवन और जीव की शुरुआत कैसे हुई? कोई नहीं बता सकता कि ईश्वर के सहयोग से सबकुछ अस्तित्व में आया या नहीं? कोई नहीं जानता कि इस ब्रह्मांड का सर्वेसर्वा कौन है? ऋषि अनुमान लगाते हुए कहते हैं कि शायद केवल उच्च शक्ति ही है, जो बता सकती है कि ब्रह्मांड की रचना कैसे हुई या फिर क्या पता उस उच्च शक्ति के ऊपर भी कोई शक्ति हो।

नासदीय सूक्त में रिसर्च से जुड़े सवालों के जवाब पहले से मौजूद थे​ 
खैर, बिंग बैंग थ्योरी भी ब्रह्मांड के केवल शुरुआती प्रक्रिया की व्याख्या करता है और वह भी आगे कहीं बन कहीं पहेली बनकर रह जाता है या ईश्वर जैसे शब्दों से जुड़ जाता है। उसके पास भी सारे सवालों के जवाब नहीं हैं। लेकिन भले ही आज आधुनिक शोधकर्ता, ब्रह्मांड के आगे के सवालों के जवाब ढूंढ रहे हों, वो इस बात से इंकार नहीं कर सकते कि ‘नासदीय सूक्ति’ में उनकी शुरुआत के रिसर्च से जुड़े सवालों के जवाब पहले से मौजूद थे।